विश्लेषण

डा. पवन सक्सेना 

मुख्य संपादक, लीडर पोस्ट 

लोकसभा के साथ ही विधानसभा का भी चुनाव करा सकती है नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी, भाजपा को लग सकता है एक और झटका

चलिए… थोड़ा सा बिहार की बात करते हैं। बिहार में नई सरकार है। नीतीश कुमार बिहार के अब लगभग स्थाई सीएम बन चुके हैं। आरजेडी यानी लालू यादव उनके बेटे तेजस्वी यादव की पार्टी सरकार में इन है और भाजपा आउट। आंखों में दिल्ली सिंहासन का सपना लिए नीतीश कुमार लगातार आठंवी बार बिहार के सीएम की कुर्सी पर विराजे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं।

विराट व्यक्तित्व वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अकूत संसाधनों वाली उनकी पार्टी भाजपा को एक सीएम की चुनौती, कहीं यह कुछ कुछ छोटा मुंह और बड़ी … नहीं, बहुत बड़ी बात जैसा मामला तो नहीं है। जितनी राजनीति मुझे समझ आती है, उससे तो ऐसा नहीं लगता।

अब अगर नीतीश कुमार सही वक्त पर सटीक दांव खेल पाते हैं तब 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए कुछ बड़ी मुसीबतें लेकर आ सकता है, और यह दांव है – वक्त से पहले बिहार की विधानसभा को भंग करने का दांव। यह चाल है लोकसभा के साथ साथ बिहार की विधानसभा का चुनाव साथ में कराने की चाल। मुझे लगता है मंझे हुए राजनेता नीतीश कुमार 2023 के अंत तक आते आते यह चाल जरूर चलेंगे। 

जब एक वक्त में देश में महाराष्ट्र के मास्टर स्ट्रोक की टीआरपी सबसे हाई थी, ठीक उसी वक्त बिहार ने कुछ ऐसा किया कि राजनीति के बाजार में भाजपा का सेनसेक्स धड़ाम हो गया। … अरे, यह क्या नीतीश बाबू, फिर लालू के साथ आ गए। या यूं कहें कि नीतीश बाबू ने भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। सरल भाषा में कहें तो ऐसी हिमाकत कि किसी आदमखोर शेर के मुंह में पंजा डालकर कोई उसका निवाला छीन ले। कसमसाई भाजपा ईडी, सीबीआई, धरना, प्रदर्शन, डिबेट करती रह गई, सत्ता नीतीश ले उड़े। वो भी इस ठसक के साथ कि 2024 में भी वो सत्ता में नहीं आयेंगे जो 2014 में आये थे। संदेश साफ था जनता के लिए भी, विपक्ष के लिए भी और दिल्ली दरबार के लिए भी।
नीतीश कुमार की आंखों में दिल्ली दरबार का सपना पुराना है। वह हमेशा एक बेहद चौकन्ने इमेज कान्शयस नेता रहे हैं। वह बिहार की राजनीति के ऐसे केटेलिस्ट है कि उनके बिना अब बिहार को देखा ही नहीं जा सकता। अगर आपकी टीवी सीरियल्स देखने में रुचि हो तब ओटीटी प्लेटफार्म पर जारी हुआ – महारानी देखियेगा। उसका एक डायलाग आजकल बेहद मशहूर है – जब जब आपको लगता है, आप बिहार को समझ गए हैं, बिहार आपको एक झटका जरूर दे देता है। सटीक डायलाग है, दिल्ली दरबार के तो दिल में ही उतर गया होगा। क्योंकि बिहार ने उनको पहला झटका तो जोर का दिया ही है। मैं यहां पर पहला शब्द का इस्तेमाल इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि बिहार की राजनीति में अभी और भूकंप आना बाकी है। अगर मेरा अनुमान और आंकलन सही बैठता है तब बिहार में विधानसभा वक्त से पहले ही भंग हो जायेगी। नीतीश कुमार पर एक इल्जाम जो चस्पा हो चुका है – वह है बहुमत की चोरी का। नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा इस मुद्दे को बड़ी जोर शोर से उठायेगी कि चुनाव तो उनके साथ मिलकर लड़े, वोट तो मोदी के नाम पर लिया और धोखा देकर बैठ लालू की गोद में गए।
नीतीश और तेजस्वी की पार्टी का गठबंधन वोटों के गुणा गणित में काफी भारी है। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव से कुछ वक्त पहले बिहार की विधानसभा को भंग कर दिया जाता है तब विधानसभा और लोकसभा का चुनाव साथ साथ होगा। यह नीतीश कुमार के लिए जैकपाट भी हो सकता है और बड़ा खतरा भी, लेकिन शायद नीतीश कुमार इसे फायदे के रूप में ही लें। क्योंकि नीतीश कुमार को उम्मीद होगी कि इस फार्मूले से बिहार में भाजपा लोकसभा और विधानसभा दोनो ही सदनों में घट सकेगी। बिहार में उनका महागठबंधन दोबारा सरकार बना लेगा और लोकसभा की 40 सीटों में से भाजपा के भी कुछ ही सीटों पर सिमट जाने की संभावना बढ़ जायेगी। साथ ही अगर वह भाजपा को कमजोर करने में कामयाब हो जाते हैं तब उनका कद भी राष्ट्रीय स्तर पर काफी बड़ा और मजबूत हो जायेगा।
हालांकि यह तस्वीर का सिर्फ एक रुख है। इस तस्वीर की दूसरी तरफ चमत्कारी व्यक्तित्व वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अकूत संसाधनों वाली उनकी पार्टी भाजपा है। भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति को सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक न्याय की लड़ाई से ही आती है। सरल शब्दों में कहें तो जातिवाद से। बिहार जातिगत जनगणना की आवाज उठा रहा है। भाजपा इस मांग से परेशान है। उसके ऐजेंडे में यह मुद्दा असहज करने वाला है, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों को बनाने, उनका निर्माण करने व उनको अपने पक्ष में ढालने में भाजपा एक माहिर खिलाड़ी है। 2024 – नीतीश कुमार के लिए आखिरी मौका है, उनकी दिल्ली की महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रही है। पटना से दिल्ली की दूरी 1060 किलोमीटर के आसपास है। अब देखना यह है कि नीतीश कुमार और उनका नया कुनबा इतनी लम्बी छलांग के लिए सरकार को दांव पर लगाकर कुछ कदम पीछे हट भी पायेगा या नहीं।
(लेखक जाने माने पत्रकार, संपादक, उद्यमी एवं राजनेता हैं, पत्रकारिता में पीएचडी हैं तथा करीब दो दशक से अधिक दैनिक अमर उजाला, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स आदि समाचार पत्रों में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया है )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here