आज हिंदी दिवस है। मुझे गर्व है कि मेरी मातृभाषा हिंदी है। हमारे देश की सभी भाषाएं भारत माता के तन पर श्रृंगार के आभूषणों की तरह है, जिसमें हिंदी उनके मस्तक की सुशोभित बिंदी है। हमारे वेद मंत्र और उपनिषदों की लिपि संस्कृत है और इन सभी का बहुत ही सरल एवं शब्दों में सुंदर ढंग से हिंदी अनुवाद किया गया है। मुझे सदैव हिंदी साहित्य से प्रेम रहा है, एवं मेरी कविता लिखना उसका ही जीवंत रूप है काव्य के माध्यम से हम अपनी कल्पनाशीलता एवं यथार्थ दोनों को सुंदर ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं। हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओं और पाश्चात्य का जितना चाहे अनुसरण कर लिया जाए ले किंतु वह हमारे संस्कार नहीं है।
आज समाज में हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा बोलना गर्व समझा जाता है परंतु हिंदी की बुनियाद से ही हम जुड़े हैं। मां और मातृभाषा के प्यार को समझने वाले में संस्कार और कर्तव्य की झलक सदैव मिलती है। बोलचाल की भाषा एवं साहित्यिक भाषा में थोड़ा अंतर अवश्य है। साहित्य की भाषा में कहीं मिठास तो कहीं क्लिष्ट शब्दों द्वारा भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति समाहित है। अर्थात- सरलता व मधुरता से सजी वर्णमाला हिंदी है अंग्रेजी भाषा को हम अपना नहीं कह सकते क्योंकि हिंदी हमारे बाल्यकाल से दैनिक जीवन में रच बस गई है अंततः मैं इतना ही कहूंगी यदि आज वर्तमान युग में अंग्रेजी भाषा विकास हेतु हमारी सीढ़ी है। तो हिंदी भाषा हमारे विकास की बुनियाद है और वही दृढ़ता से देश और राष्ट्र को संभाले हुए हैं। इसलिए हमारा परम कर्तव्य है कि अपनी मातृभाषा को सम्मान देकर अगली पीढ़ी को भी अपनी मातृभाषा की सार्थकता समझाएं एवं हिंदी के विकास में निरंतर सहयोगी बने।