दिल्ली । अमेरिका और चीन के बीच चल रहा टैरिफ वॉर अब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले सामानों पर भारी टैरिफ लगाए हैं जिसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर कड़े टैक्स लगाए। दोनों देश अपनी-अपनी स्थिति पर अड़े हैं और पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे।
अमेरिका के लिए यह नीति घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने व्यापार घाटा कम करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने का एक प्रयास है। इससे अमेरिकी कंपनियों को स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी। लेकिन साथ ही आयात महंगे होने से उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा कीमतें ऊपर जाएंगी और महंगाई का दबाव फेडरल रिजर्व की नीतियों को जटिल बना सकता है।
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दूसरी ओर चीन इस टकराव को आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मौका मान रहा है। वह अपने घरेलू बाजार को मजबूत करने और वैकल्पिक व्यापारिक साझेदारों की ओर रुख कर रहा है। हालांकि अमेरिकी बाजार पर उसकी भारी निर्भरता के चलते उसे आर्थिक झटके झेलने पड़ रहे हैं। निर्यात में गिरावट उत्पादन में कटौती और बेरोजगारी जैसे खतरे उसके सामने खड़े हैं। इस टैरिफ युद्ध का अंत कौन पहले करता है यह तो वक्त बताएगा लेकिन इतना तय है कि दोनों देशों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी — आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर।