यों तो देश-दुनिया में तेंदुए जैसे वन्‍य जीवों को पकड़ने के लिए कई अभियान लंबे चले होंगे लेकिन कर्नाटक में चला तेंदुए को पकड़ने का हालिया अभियान कुछ मामलों में इसलिए अलग है, क्‍योंक‍ि इस आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए कर्नाटक सरकार पर भारी जन दबाव था। लोग वन मंत्री से इस्‍तीफा भी मांग रहे थे। स्‍कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए थे और पूरा अमला लगाकर एक महीने तक वन विभाग ने पल-पल इलाके में नजर भी रखी लेकिन तेंदुआ पकड़ पाना तो दूर उसकी एक झलक भी कैमरे में कैद न हो सकी। नतीजतन, तेंदुए को रहस्‍यमयी मानते हुए वन विभाग ने महीने भर का अभियान खत्‍म कर दिया।

कर्नाटक। वन विभाग, पुलिस विभाग, शार्पशूटर, वन्यजीव विशेषज्ञ, एनेस्थेटिक विशेषज्ञ, कई स्थानीय शिकारी समेत करीब साढ़े तीन सौ लोगों के अमले की मुस्‍तैदी, आठ टॉवर, 23 ट्रैप कैमरे, हनी ट्रैपिंग के लिए दो हाथी और पूरे 30 दिन का लंबा वक्‍त लेकिन जिस तेंदुए को ट्रैप किया जाना था, उसकी एक झलक भी नहीं दिख सकी। यह आदमखोर बताया जा रहा तेंदुआ मायावी हो गया। रहस्‍यमयी। नतीजतन, यह मानकर क‍ि वह जंगल में चला गया होगा, उसकी धड़-पकड़ के लिए एक महीने चले अभियान को बंद करना पड़ा है।
मामला उत्तरी कर्नाटक का है, जहां के बेलागवी में पिछले एक महीने से तेंदुए को लेकर इस कदर दहशत का वातावरण बना हुआ था क‍ि आसपास के 22 स्‍कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए थे और इनमें पढ़ने वाले 20 हजार से ज्‍यादा छात्र-छात्राएं घर से ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। दहशत में लोगों ने घरों से निकलना छोड़ दिया था। लोग तेंदुए के जल्‍द से जल्‍द पकड़े जाने की दुआ कर रहे थे। ज्‍यों-ज्‍यों अभियान के दिन बढ़ते जा रहे थे, सरकार पर लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा था। यहां तक‍ क‍ि तेंदुए को पकड़ने में हो रही देरी पर लोग वन मंत्री उमेश कट्टी के इस्तीफे की मांग करने लगे थे। लोगों के गुस्‍से को देखकर वन मंत्री को लोगों को बार-बार आश्‍वासन देना पड़ा कि तेंदुए को जल्‍द पकड़ लिया जाएगा, क्‍योंकि वन विभाग मुस्‍तैदी से तेंदुए को पकड़ने को जुटा हुआ था, लेकिन एक महीने की मशक्‍कत के बाद यह माना गया क‍ि तेंदुआ होता तो मिलता।

350 लोग लगे थे, अर्जुन और अले को भी बुला लिया गया था
5 अगस्‍त के बाद तेंदुए को पकड़ने के लिए वन विभाग लगातार सक्रिय हो गया था। माना गया कि तेंदुआ 250 एकड़ के गोल्‍फ क्‍लब में है इसलिए क्‍लब के आसपास पूरी तरह से घेराबंदी कर दी गई। वन विभाग की टीमें लगा दी गईं। 10 पिंजरे लगाए गए, जिनमें ट्रैप के रूप में कुत्तों और सूअर के बच्चों को रखा गया। तेंदुए को आकर्षित करने के लिए मादा तेंदुए के गोबर और मूत्र को भी पिंजरों पर लगाया गया है, ताकि उसे लुभाया जा सके। जेसीबी भी लगाई गई। वन कर्मियों के अलावा पुलिस की टीमें भी मुस्‍तैद कर दी गईं। शार्प शूटर भी बुला लिए गए। वन्‍य जीव विशेषज्ञ भी लगाए गए। स्‍थानीय शिकार‍ियों को भी चप्‍पे-चप्‍पे पर मुस्‍तैद कर दिया गया लेकिन अभियान शुरू किए जाने के पहले सप्‍ताह में न तो तेंदुआ नजर आया और न ही उसके पग मार्ग ही कहीं मिले। नतीजतन, तेंदुए को नजर में लेने के लिए आठ टॉवर बनाए गए। इन्फ्रारेड सेंसर वाले 23 ट्रैप कैमरे लगाए गए ताक‍ि तेंदुए की गत‍िव‍िधियां उसमें कैद हो सकें लेकिन एक बार भी तेंदुए की झलक नहीं मिल सकी। ऐसे में, यह माना गया कि तेंदुआ बेहद शातिर है इसलिए हनी ट्रैप की रणनीति बनाई गई। इसके लिए शिवमोग्गा स्थित साकरेबैलु हाथी शिविर से लाए गए दो हाथी- अर्जुन और अले को बुलाया गया लेकिन तेंदुआ फ‍िर भी नहीं दिखा।
मजदूर पर हमले के बाद फैली थी दहशत
असल में, यह मायावी तेंदुआ 5 अगस्त को तब सुर्खियों में आया था, जब इसने बेलगाम शहर में घुसकर एक मजदूर पर हमला किया, हालांकि मजदूर की जान बच गई थी लेकिन लोगों का मानना था क‍ि तेंदुआ बेलगाम स्थित एक गोल्फ कोर्स क्‍लब में जा छुपा है और वह फ‍िर से किसी पर भी हमला कर सकता है। इस आशंका के बाद आसपास इलाके में रहने वालों में दहशत फैल गई थी। बता दें कि कर्नाटक में एक बड़ा वन क्षेत्र है और कई वन्यजीव अभयारण्य हैं, जिनमें कुल 1783 तेंदुए हैं। तेंदुओं को कई बार कर्नाटक के बड़े शहरों जैसे बैंगलोर और मैसूर में देखा गया है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ क‍ि बेलगाम में तेंदुआ देखा गया। इसलिए यहां आए तेंदुए को पकड़ना जरूरी हो गया था, इसलिए भी इस अभियान को चलाया गया।
पल-पल अभियान पर नजर रखे थे लोग
एक महीने से चल रहे अभ‍ियान पर दहशजदा लोग लगातार नजर रखे हुए थे। सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर चर्चाएं थीं। स्‍थानीय मीडिया भी वन व‍िभाग के अफसरों से लगातार अभ‍यिान को लेकर सवाल कर रहा था। चूंक‍ि एक महीने के अभियान में तेंदुआ एक बार भी नहीं दिखा तो यह माना गया क‍ि वह मुंडोली वन क्षेत्र में घुस गया होगा। स्‍थानीय नागरिकों ने भी ऐसा माना। नतीजतन, अभ‍ियान को खत्‍म कर दिया गया। हालांकि लगातार महीने भर अभियान चलाए जाने के बाद भी तेंदुए की एक भी झलक न मिलने से यह भी माना जा रहा है क‍ि वह अभियान शुरू होने से पहले ही जंगल में चला गया होगा। ऐसे में, एक महीने की सारी रणनीति और कवायद बेनतीजा तो रही ही, उस तेंदुए ने पूरे अमले को खूब छकाया, जो इलाके में था ही नहीं, नतीजतन, तेंदुए को अब ‘मायावी’ कहा जा रहा है।

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