संघ प्रमुख भागवत का जनसंख्‍या नीत‍ि बनाने पर जोर, घुसपैठ और धर्मांतरण पर चिंता जताई

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नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए व्यापक नीति बनाने पर जोर दिया। समाज के सभी वर्गों से भी जनसंख्‍या असंतुलन रोकने के लिए आगे आने का आह्वान किया, साथ ही जनसंख्‍या असंतुलन के लिए धर्मांतरण और घुसपैठ को भी जिम्‍मेदार और चिंताजनक बताया।

नागपुर के विशाल रेशमबाग मैदान में बुधवार को पारंपरिक विजयादशमी समारोह में संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या असंतुलन के कारण दुनिया के कई अन्य देश भी टूट गए और उनसे अलग हो गए। पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो का गठन किया गया।

भागवत ने देश में महिला सशक्तिकरण की भी पुरजोर वकालत की और कहा कि पुरुष और महिला हर पहलू और सम्मान में समान हैं, उनमें समान क्षमता और क्षमताएं हैं। कहा कि महिलाओं को जगत जननी (ब्रह्मांड की मां) के रूप में माना जाता है, लेकिन घर पर उन्हें गुलाम माना जाता है। महिलाओं के सशक्तिकरण की शुरुआत घर से होनी चाहिए और उन्हें समाज में उनका उचित स्थान मिलना चाहिए।

कार्यक्रम में पद्मश्री एवं पर्वतारोही संतोष यादव।

संघ प्रमुख महिला सशक्तिकरण पर अपनी मुख्य अतिथि पद्मश्री एवं पर्वतारोही संतोष यादव के सामने बोल रहे थे। संतोष यादव को संघ की ओर से विजयादशमी समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था। वह संघ के इतिहास में इस तरह के आयोजन के लिए पहली महिला मुख्य अतिथि थीं। हालांक‍ि संघ प्रमुख ने कहा क‍ि यह पहली बार नहीं है कि आरएसएस के समारोह में एक महिला को आमंत्रित किया गया, अनुभवी कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अमृता कौर और नागपुर से पहली लोकसभा सदस्य अनुसुबाई काले और अन्य को भी आरएसएस के कार्यक्रमों में आमंत्रित किया गया था।

मोहन भागवत ने कहा क‍ि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की चर्चा हर तरफ हो रही है। कई लोग अवधारणा से सहमत हैं लेकिन ‘हिंदू’ शब्द के विरोध में हैं और दूसरे शब्दों का उपयोग करना पसंद करते हैं। हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है, अवधारणा की स्पष्टता के लिए हम अपने लिए हिंदू शब्द पर जोर देते रहेंगे। उन्‍होंने कहा क‍ि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण एक भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि हम से अथवा संगठित हिंदू से खतरा है, ऐसा न कभी हुआ है, न होगा, न यह हिंदू का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा है। हालांकि अपने भाषण में भागवत ने आत्मरक्षा की बात भी कही। उन्होंने कहा क‍ि अन्याय, अत्याचार, द्वेष का सहारा लेकर गुंडागर्दी करने वाले समाज की शत्रुता करते हैं तो आत्मरक्षा अथवा आप्तरक्षा तो सभी का कर्तव्य बन जाता है। भागवत ने कहा क‍ि तथाकथित अल्पसंख्यकों के कुछ सज्जन हमसे मिल रहे हैं, संघ के पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं और यह जारी रहेगा। यह नया नहीं है।

राजस्थान के उदयपुर में 28 जून को कन्हैया लाल नाम के दर्जी की दो लोगों ने दिनदहाड़े हत्या कर दी थी। मोहन भागवत ने उदयपुर की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ दिन पहले उधर उदयपुर में, इधर अमरावती में, और भी कई जगह जघन्य क्रूरता वाली घटनाएं हुईं। क्या कारण था, क्या नहीं, इस पर नहीं जाते हैं, लेकिन जो कुछ भी हुआ, वह बहुत क्रूरतापूर्ण घटना थी। पूरा समाज विरोध में गया। हमेशा होता नहीं, लेकिन इस बार मुस्लिमों के भी कुछ प्रमुख लोगों ने इसका विरोध किया, उसको गैर-इस्लामिक बताया। अन्याय, असत्य, अत्याचार के खिलाफ ऐसे ही खड़ा होना चाहिए। कोई भी अपवाद नहीं होना चाहिए। सभी समाज के सज्जनों को ऐसा मुखर होना चाहिए। हिंदू समाज में ऐसी मुखरता है। कोई ऐसी घटना होती है तो हिंदू भी आरोपी है तो उसके खिलाफ भी लोग बोलते हैं।

संघ प्रमुख ने कहा क‍ि हम विश्व में सब जगह और सबके साथ भाईचारा और शांति के पक्षधर हैं, लेकिन लोग डराते हैं। अरे, संघ वाले मारेंगे। अरे, हिंदू संगठन होगा, तो सबको बाहर जाना पड़ेगा। यह हौव्वा फैलाते हैं। ऐसा कुछ डर मन में है, इसलिए इसका निराकरण करने की इच्छा मन में लेकर तथाकथित अल्पसंख्यक समाज के कुछ बंधु पिछले कुछ वर्षों में हमसे मिलते रहे हैं। हम भी मिले हैं, हमारे प्रमुख अधिकारी भी उनसे मिले हैं। आना-जाना, दोनों चल रहा है। ये कोई परसों नहीं हुआ, ये बहुत पहले से चल रहा है। भाव तो संघ का डॉक्टर साहब (डॉ. हेडगेवार) के समय से ही शुरू हुआ, लेकिन प्रत्यक्ष में शुरू हुआ जब गुरुजी (संघ के संस्थापक गोलवलकर) से डॉ.जिलानी मिले तब से। तब से यह क्रम धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यह बढ़े, ऐसी संघ की इच्छा है। संघ इस संवाद को कायम रखेगा, क्योंकि समाज को तोड़ने के प्रयास चल रहे हैं।

भागवत ने कहा क‍ि हम सब दिखते अलग हैं, इसलिए हमारा अलगाव है। हम एक-दूसरे के नहीं हैं। हम भारत से अलग हैं। हमको अलग चाहिए- ये गलत विचार हैं। इस गलत विचार का दुख भरा परिणाम हमने देखा है। इसके कारण भाई टूटे, धरती खोई, मिटे धर्म संस्थान… ये प्रसंग हुआ। हमको फिर से उस रास्ते पर नहीं जाना है। हमको एक रहना है तो हमको भारतीय होना है। हम भारत के हैं। हम भारत की संस्कृति से हैं। हम भारत के पूर्वजों के हैं। चाहे पंथ-संस्कृति अलग हो, भाषा-प्रांत अलग हो, खान-पान, रीति-रिवाज अलग-अलग हो, हम समाज और राष्ट्रीयता के नाते एक हैं। यही हमारे लिए कल्याणकारी होगा।

संघ प्रमुख ने कहा क‍ि मंदिर, पानी, श्मसान, सबके लिए समान हो, इसकी व्यवस्था तो सुनिश्चित करनी ही होगी। ये घोड़ी चढ़ सकता है, वो घोड़ी नहीं चढ़ सकता, ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें तो हमें खत्म करनी होंगी। सबको एक-दूसरे का सम्मान करना होगा। हमें समाज का सोचना होगा, सिर्फ स्वयं का नहीं। कोरोना काल में समाज और सरकार ने एकजुटता दिखाई तो जिनकी नौकरी गई, उन्हें काम मिला। संघ ने भी रोजगार देने में मदद की। सरकार ऐसी व्यवस्था करे कि लोग बीमार ही नहीं हों। उपचार तो बीमारी के बाद होता है। उन्‍होंने कहा क‍ि भारत कोविड के कारण आर्थिक संकट से तेजी से उबर रहा है और श्रीलंका के राजनीतिक संकट के दौरान और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी भारत की भूमिका प्रशंसनीय है। भागवत ने कहा, इन दो स्थितियों के कारण दुनिया में हमारा राजनीतिक वजन बढ़ गया है।

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