प्राइवेट मेडीकल कालेज लाबी के आगे क्या पूरी हो सकेगी पीएम की मंशा। सुप्रीम कोर्ट ने एनएमसी से दो हफ्ते में मांगा है जवाब।

 


डा.पवन सक्सेना
मुख्य संपादक
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नीट का रिजल्ट आ गया। देश को एक लाख से ज्यादा डाक्टर मिल जायेंगे। नीट एक्जाम में कुछ कामयाब हुए हैं, कई सारे नाकाम। नाकाम होने वालों को भविष्य में कड़ी मेहनत के साथ सफल होने की शुभकामनायें। यहां पर बात उनकी होनी है जो कामयाब हुए हैं। यानी 09,93,069, ऐसे बच्चे, जो क्वालीफाई हुए हैं, उन्हीं में से कई, काउंसलिंग के रास्ते से होते हुए मेडीकल कालेजों की खाली सीटों तक पहुंच सकेंगे। पर इससे पहले कि आप कुछ सुनहरे सपनों में खो जायें, थोड़ा रुक जाइये, क्योंकि इस साल यह इतना आसान नहीं होने जा रहा है। अभी बड़ी मुश्किल हैं, इस राह में। देश की सुप्रीम अदालत के सामने मेडीकल कालेज बनाम सरकार को लेकर एक बड़ा मुकदमा खड़ा हो चुका है। लगता है, जब तक इस मुकदमें का कोई हल नहीं निकलेगा तब तक एडमीशन का कामकाज या तो नहीं चलेगा, या चलेगा भी तो हल्के हल्के से चलेगा।
इस पूरी कहानी को समझने के लिए हमें कुछ पीछे जाना होगा। जाते हुए जाड़ों तक। फरवरी का महीना। रूस और युक्रेन में जंग छिड़ गई। हमारे लिए तो यह जंग एक टीवी शो जैसी थी, लेकिन कई हिंदुस्तानियों की सांसे इसलिए अटकी थीं, क्योंकि उनके बच्चे मेडीकल की पढ़ाई के लिए वहां फंसे थे। बारूद का धुआं और धमाकों की आवाजों के बीच अभ्यस्त हुए दिमागों ने जब तार जोड़े तब समझ आया कि युक्रेन में मेडीकल की पढ़ाई सस्ती है, इसलिए बड़े पैमाने पर आम हिंदुस्तानी अपने बच्चों को युक्रेन या दूसरे ऐसे देशों में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए भेजता है, जहां पर फीस बेहद कम है। इसी बहस मुबाहिसे के बीच अचानक से देश के प्राइवेट मेडीकल कालेजों में आसमान छूती फीस का मुद्दा सामने आ गया। लोग तुलना करने लगे। जब विदेश में सस्ती पढ़ाई हो सकती है तब भारत में क्यों नहीं। इसी बीच आ गया सात मार्च। पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडिल से एक घोषणा हुई – कुछ दिन पहले ही सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है, जिसका बड़ा लाभ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को मिलेगा। हमने तय किया है कि प्राइवेट मेडिकल कालेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडीकल कालेजों के बराबर ही फीस लगेगी। डाक्टर बनने व बेहतर भविष्य की चिंता में घुल रहे गरीब व मध्यम वर्ग के लिए यह बहुत बड़ी राहत की खबर थी। टीवी और अखबारों में हेडलाइन छा गई। नेशनल मेडीकल काउंसिल एनएमसी की ओर से इस आशय की विस्तृत गाइडलाइन भी जारी की जा चुकी थी।

इस घोषणा की असली परख का वक्त, अब करीब छह महीने बाद आना था। सात सितंबर को नीट का रिजल्ट घोषित किया गया। इससे ठीक दो दिन पहले यानी पांच सितंबर को प्राइवेट मेडीकल कालेजों की संस्था एएचएसआई एसोसियेशन आफ हेल्थ साइंस इंस्टीट्यूट्स की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक वाद दायर किया गया। यूनियन आफ इंडिया यानी भारत सरकार व अन्य के खिलाफ दायर इस वाद में प्राइवेट मेडीकल कालेज ने एनएमसी के उस आफिस मेमोरेंडम को चुनौती दी है, जिसमें फीस को आधा करने की बात कही गई थी। साथ ही केरल हाईकोर्ट के एक जजमेंट का भी जिक्र किया गया है,जिसमें केरल हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है, लेकिन यह फैसला सिर्फ केरल पर ही लागू है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश देखें-

supreme court

सुप्रीम कोर्ट ने एनएमसी से दो हफ्ते में जवाब मांगा है। इस पूरी कहानी में सबसे खास बात है टाइमिंग। एनएमसी ने अपना आफिस मेमोरेंडम जारी किया था करीब छह महीने पहले, लेकिन नीट रिजल्ट आने से ठीक दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में मामला ले जाने से यह अंदेशा साफ होता है कि सरकारी तंत्र के बाहर के कुछ चुनिंदा लोगों को यह जानकारी थी कि नीट का रिजल्ट कब घोषित होना है और कानूनी दांवपेंच किस तरह से इस शानदार योजना को ठिकाने लगा सकते हैं।
गाइड लाइन देखने के लिए क्लिक करें-
  nmc
अब यहां परीक्षा सरकार और सिस्टम में बैठे जिम्मेदार लोगों की भी होनी है। सामान्य समझ के आधार पर यह समझा जा सकता है, कि मेडीकल कालेज किसी ट्रस्ट या सोसाइटी से संचालित होते हैं, यानी यह कोई प्राफिट मेकिंग, मुनाफा कमाने के प्रतिष्ठान नहीं हैं। यह भी सच है कि इतने बड़े और भारी भरकम सेटअप लगाने वाले मेडीकल कालेज संचालकों की भी अपनी वाध्यतायें हैं। खर्च और कमाई के बीच अगर संतुलन बिगड़ेगा तब कालेज बंद होने की नौबत आ सकती है, लेकिन अगर यह आंकड़ा अकूत मुनाफाखोरी का है तब सरकार को इस लाबी के सामने झुकना नहीं होता। सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मजबूत लड़ाई लड़नी होगी, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस अद्भुत और जनउपयोगी योजना को जमीन पर उतारा जा सके। एक गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे के लिए भी मेडीकल कालेज के दरवाजे खुल सके। निदा फाजली साहब का एक मकबूल शेर है – यही है जिंदगी, कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें। इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो। काश, ऐसा हो जाये कि गरीब का बच्चा कम कीमत पर चमकदार मेडीकल कालेजों के अंदर पहुंच सके। यह मेरी, आपकी और हम जैसे कई जरूरतमंदों की मंशा हो सकती है मगर फैसले शायद ऐसे नहीं होते। फिलहाल हम और आप सिर्फ एक ही काम कर सकते हैं और वह है – प्रार्थना करना कि प्रधानमंत्री की घोषणा लागू हो सके और गरीब का भला हो सके।
(लेखक जाने माने पत्रकार, मुख्य संपादक (leaderpost.in), उद्यमी एवं राजनेता हैं, पत्रकारिता में पीएचडी हैं तथा करीब दो दशक से अधिक दैनिक अमर उजाला, दैनिक जागरण, नव भारत टाइम्स आदि समाचार पत्रों में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य कर चुके हैं )

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