कुलदीप यादव: जो पाकिस्तान से लौटे, 28 साल की सजा काटकर

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अहमदाबाद। पाकिस्तान की जेल में 28 साल की सजा काट कर एक भारतीय स्वदेश लौट आया और अपने परिवार वालों से मिला। पाकिस्तानी एजेंसियों ने उसे वर्ष 1994 में गिरफ्तार किया था और जासूसी के आरोप में एक अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। यह शख्स हैं- 59 वर्षीय कुलदीप यादव। उनको हाल ही में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने सजा पूरी होने के बाद रिहा कर दिया था।

ऐसे पहुंचे पाकिस्तान
देहरादून में जन्मे कुलदीप यादव ने अहमदाबाद से साबरमती आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और एलएलबी करने के बाद वह 1991 में नौकरी तलाश रहे थे। उस वक्त कुछ लोगों ने उन्हें देश के लिए काम करने का प्रस्ताव दिया। उनके मुताबिक, 1992 में वह पाकिस्तान पहुंचे, वहां दो साल काम करने बाद उन्होंने जून 1994 में भारत लौटने की योजना बनाई, लेकिन इससे पहले ही उन्हें पाकिस्तानी एजेंसियों ने गिरफ्तार कर लिया और एक अदालत में पेश किया गया। कई सालों तक उनसे अलग-अलग एजेंसियों ने पूछताछ की।

पाक जेल में सरबजीत के साथ भी रहे
पाकिस्तान में मिली यातना का जिक्र करते हुए कुलदीप ने कहा कि वर्ष 1996 में पाकिस्तान की अदालत ने उन्हें जासूसी के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उन्हें लाहौर की कोट-लखपत सिविल सेंट्रल जेल भेज दिया। वहां उनको स्वर्गीय सरबजीत से मिलने का मौका मिला था। सरबजीत की मृत्यु तक पाकिस्तानी और भारतीय जेल के कैदियों ने एक ही बैरक साझा किया।

सरकार से मदद की मांग की
स्वदेश वापसी के बाद कुलदीप यादव ने भारत सरकार और भारतीय नागरिकों से आर्थिक मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि 30 वर्षों तक देश की सेवा करने के बाद वह आज जीरो बट्टा जीरो हैं, छोटे भाई दिलीप और बहन रेखा पर निर्भर हैं। सरकार को सेवानिवृत्त सैनिकों की तरह उनको मुआवजा देना चाहिए। उनको भी कृषि भूमि, घर, पेंशन और जमीन दी जानी चाहिए। ताकि वह अपने जीवन की नई शुरूआत कर सकें, क्योंकि 59 साल की उम्र में कोई भी उनको काम पर रखने वाला नहीं है, इसलिए वह नागरिकों से मदद के लिए आगे आने और सामाजिक व आर्थिक रूप से समर्थन देने की अपील करते हैं।

इंतजार में चल बसे माता-पिता
बेटे की वापसी की राह देखते देखते कुलदीप के माता-पिता भी चल बसे। माता मायादेवी ने बेटे की रिहाई के लिए राज्य से केन्द्र सरकार तक गुहार लगाई, लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका। अदालत की लड़ाई लड़ते-लड़ते वर्ष 2011 में उनका भी निधन हो गया

पाकिस्तान में बंद कैदियों की दुर्दशा बताई
कुलदीप यादव ने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग से पड़ोसी देश की जेलों में बंद भारतीयों की दुर्दशा को समझते हुए उन्हें घर वापस लाने में मदद की अपील की। कहा कि पाकिस्तानी जेल में बंद कईं भारतीयों ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के अधिकारियों द्वारा उन्हें दी गई प्रताड़ना के कारण वे अपना नाम तक भूल गए हैं और वे लोग सजा पूरी होने के बाद भी जेल में हैं।

अपनी बहन के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि जब भी हम पाकिस्तान सरकार और जेल अधिकारियों से हमें रिहा करने का अनुरोध करते थे तो वे केवल यही कहते थे कि ‘भारत सरकार हमें स्वीकार नहीं कर रही।’ जब भारत सरकार हमें स्वीकार नहीं करेगी तो रिहाई मुश्किल होगी ही।’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार को यहां की जेल में बंद पाकिस्तानी कैदियों को पाकिस्तान में बंद भारतीयों के बदले रिहा करना चाहिए।

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