नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून संशोधन को लेकर बुधवार को बड़ी सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए साफ कहा कि यह पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है और सभी समुदायों पर लागू होता है। इसी बीच सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नया वक्फ कानून मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का हनन करता है। उन्होंने कहा कि बिना वक्फ डीड के अब वक्फ नहीं बनाया जा सकता जो इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ है। सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि अब गैर-मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड का हिस्सा बन सकते हैं जिससे मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप होगा।
इस पर जस्टिस केवी विश्वनाथन ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 26 का संबंध केवल धार्मिक प्रथाओं से नहीं बल्कि धार्मिक संस्थाओं के प्रशासन से भी है और इसे धर्म की आवश्यक प्रथाओं से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस ने सिब्बल को यह भी कहा कि वे मुद्दों को संक्षेप में पेश करें क्योंकि कोर्ट के पास सीमित समय है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि संशोधित वक्फ कानून पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है 38 बैठकें हुईं और 92 लाख ज्ञापन देखे गए। इसके बाद ही संसद से बिल पास हुआ और राष्ट्रपति की मंजूरी मिली।
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सुप्रीम कोर्ट में अब तक वक्फ कानून के खिलाफ 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं जिनमें कई राजनीतिक दल, धार्मिक संगठन और सामाजिक संस्थाएं शामिल हैं। कोर्ट ने साफ किया कि पहले मूल याचिकाओं पर सुनवाई होगी और फिर आगे की प्रक्रिया तय की जाएगी। चीफ जस्टिस ने दो टूक कहा – “हिंदू धार्मिक मामलों में भी संसद ने कानून बनाए हैं अब मुस्लिम मामलों में कानून बनाया गया है। अनुच्छेद 26 सब पर लागू होता है सिर्फ एक धर्म तक सीमित नहीं।” यह सुनवाई आने वाले दिनों में देश की राजनीति और धर्मनिरपेक्षता की समझ पर बड़ा असर डाल सकती है।