डा. पवन सक्सेना
मुख्य संपादक

भारत के सबसे बुजुर्ग पुरातत्वविद का निधन और मेरा अनुभव और संस्मरण

बीबी लाल साहब नहीं रहे। वह देश और दुनिया के जाने माने इतिहासकार, पुरातत्वविद् थे। 101 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनको नमन्। उनके परिवार के साथ मेरी संवेदना। करीब 20-22 साल पहले, उस वक्त मैं अमर उजाला में एक पत्रकार के रूप में काम करता था। मेरे संपादकीय प्रभारी सुनील शाह जी का आदेश आया – बीबी लाल साहब का एक अच्छा सा इंटरव्यू करना है। उनके बेटे भाई राजेश लाल जी उस वक्त बरेली में एयरफोर्स में एयर कोमोडोर थे। पत्रकारिता के साथ साथ मैं इतिहास का भी छात्र रहा हूं। बीबी लाल साहब से मिलना मेरे लिए किसी बड़े सपने के पूरे होने जैसा था। किसी वजह से इंटरव्यू एक दिन टल गया। अगले दिन का वक्त तय हुआ।र मुझे तैयारी करने के लिए एक दिन का वक्त और मिल गया था। उस वक्त जितने रिफरेंस मैं जुटा सकता था, मैने बड़ी मेहनत से अपने सवालों का क्रम तैयार किया। मिलना यहीं तय हुआ था। बरेली एयरफोर्स स्टेशन पर राजेश लाल जी के शानदार सरकारी आवास पर।
मुझे याद है, मैं दोपहर के वक्त पहुंचा। उन्होंने बहुत प्यार से मुझे बैठाया। मुझे याद है, मेरे शुरुआती शब्द कुछ लड़खड़ाये से थे। शायद उनकी अनुभवी आंखों ने मेरी नर्वसनेस को भांप लिया था। उन्होंने बातचीत में मुझे कुछ इजी किया। मैने उनको बताया कि मैं भी इतिहास का छात्र हूं तब वह बेहद खुश हुए। कुछ अनौपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने मुझे सहज कर लिया था। हम बातचीत के अनौपचारिक से औपचारिक से दौर में कब चले गए, पता ही नहीं चला। यह वह वक्त था जब एक डायरी पेन और छोटा आडियो रिकार्डर मेरे और मेरे जैसे पत्रकारों के साथी होते थे। हां, कम्युनिकेशन के लिए शायद एक पेजर भी। मैं शायद, दो, तीन … नहीं करीब चार घंटे उनके साथ रहा। वह एक बहुत बड़ा इनसाइकोपीडिया थे। एक सागर के समान। मेरी सोच, समझ और क्षमता से बेहद बड़े, विराट और विशाल। उनके निधन पर मीडिया में, उनकी अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की थ्योरी की बहुत चर्चा हो रही है। वास्तव में, यह उनका एक बड़ा और शानदार काम था। वह एएसआई के डाइरेक्टर रहे थे, उनके तर्क और तथ्य कमाल के थे। उन्होंने अपने पुरातात्विक अनुसंधान, उत्खनन से बहुत ही प्रमाणिकता के साथ सालों पहले ही बता दिया था कि अयोध्या में पहले भगवान श्री राम का मंदिर विद्यमान था। मुझे याद है, मैने अपने सवालों को कुछ राजनीति के इर्द गिर्द घुमान, उलझाने और बुनने की कोशिश की थी। मगर लाल साहब, की सोच और समझ बेहद स्पष्ट थी। वह इतिहास को वैज्ञानिकता की निगाह से देखते थे, कोरी धारणा से नहीं। एक ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया अपनी अपनी धारणाओं के मुताबिक अपने अपने इतिहास को गढ़ने को बेताब है, इतिहास के इस वैज्ञानिक का जाना बड़ी क्षति है।
खैर…इंटरव्यू बहुत शानदार रहा था। इसको लिखना भी मेरे लिए एक बड़ा चैलेंज था। मैने भी बहुत रच बसकर लिखा। मैरे लिए बेहद खुशी की बात थी इंटरव्यू छपने के बाद मेरे व मेरे संपादक के पास उनका फोन आना। उनका कहना था हिंदी में मेरा ऐसा इंटरव्यू नहीं हुआ। मेरे लिए तारीफ के उनके यह शब्द किसी बहुत बड़े एवार्ड की तरह थे। वह इतिहास की कई प्रमाणिक किताबों के लेखक थे, हाल ही में कुछ साल पहले उन्होंने मनु की जल प्रलय और सरस्वती नदी के विलुप्त होने पर अपना एक शोध पत्र प्रस्तुत किया था। इतिहास में रूचि के कारण मैने भी पढ़ा था। अद्भुत, रोचक और तार्किक तथ्य थे उनके पास। उनके बड़े बेटे राजेश लाल जी बाद में एयरफोर्स में शायद एयर वाइस मार्शल के पद तक पहुंचे। उनकी पोस्टिंग के वक्त कभी कभी मेरी उनसे साईं मंदिर में मुलाकात भी हो जाती थी। फिर मिलने का यह सिलसिला कभी नहीं बना। आज लाल साहब के जाने की खबर ने मुझे पुरानी स्मृतियों से जोड़ दिया। उन स्मृतियों को और बीबी लाल साहब को मेरा नमन, श्रद्धांजलि।

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