नाइट्रोजन युक्त वातावरण में संरक्षित भारत का हस्तलिखित संविधान

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नई दिल्ली: करीब 70 साल पहले 26 नवंबर 1949 को स्वतंत्र भारत में भारतीय संविधान को अपनाया गया था और तभी से इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान को अपनाए जाने के दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया। वर्ष 1980 में महसूस किया गया कि संसद के पुस्तकालय में रखे अंग्रेजी और हिंदी के मूल हस्तलिखित संविधान की प्रतियों को लंबे समय तक सुरक्षित बनाए रखने के लिए नए सिरे से प्रयास करने की जरूरत है। ऐसे में, इस ऐतिहासिक दस्तावेज के दीर्घकालीन संरक्षण के लिए उपयुक्त वैज्ञानिक विधियों की तलाश की जाने लगी।

इसी क्रम में संसद के पुस्तकालय की ओर से नई दिल्ली स्थित वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) से संपर्क किया गया और विचार किया गया कि कांच के विशेष बक्सों में रखकर संविधान की प्रतियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। एनपीएल के वैज्ञानिकों ने इस चुनौती से निपटने के लिए संविधान की मूल हस्तलिखित प्रतियों को नाइट्रोजन गैस से भरे वायु-रोधी कांच के बक्से में रखने का सुझाव दिया।

यह माना जा रहा था कि वायु-रोधी नाइट्रजोन से भरे बक्से में प्रदूषण, धूल कणों और सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले क्षरण से संविधान की हस्तलिखित दोनों प्रतियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। जितना आसान इस काम को समझा जा रहा था यह उतना सरल नहीं था, क्योंकि नाइट्रोजन आसानी से लीक हो जाती है। वायुमंडल की गैसों में सर्वाधिक 78 प्रतिशत मात्रा में पायी जाने वाली नाइट्रोजन रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है। रासायनिक रूप से निष्क्रिय तत्व नाइट्रोजन साधारण ताप पर न तो जलती है और न ही अन्य धातुओं से यौगिक बनाती है।
एनपीएल के वर्तमान निदेशक डॉ डी.के. असवाल ने शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित अपने एक आलेख में बताया है कि “इस ऐतिहासिक दस्तावेज को संरक्षित रखने के लिए एक ऐसी सीलिंग सामग्री विकसित करने की जरूरत महसूत की गई, जिससे नाइट्रोजन कांच के पारदर्शी बक्से से बाहर न आ सके और बाहरी वातावरण से प्रदूषण, नमी या फिर सूक्ष्मजीव भीतर न प्रवेश कर सकें।”

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