वाराणसी। ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद में कोर्ट ने सोमवार को अहम फैसले में सुनवाई के लिए मस्जिद परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा की अनुमति देने वाली हिंदू पक्ष की याचिका स्‍वीकार कर ली। जिला अदालत में अब 22 सितंबर से इस मामले की सुनवाई होगी। वाराणसी के जिला जज एके विश्वेश ने 24 अगस्‍त को हुई सुनवाई के बाद 12 सितंबर तक अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब हम आपको बताते हैं कि क्या है ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद?

ज्ञानवापी विवाद में अब तक क्या-क्या हुआ?
1991 : भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में पहली याचिका दायर हुई। याचिकाकर्ता ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की इजाजत कोर्ट से मांगी।
1998 : ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट जाना ठीक समझा। कमेटी ने कहा कि इस मामले में सिविल कोर्ट कोई फैसला नहीं ले सकती। बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लग गई।
2019 : भगवान विश्वनाथ की तरफ से विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी कोर्ट में याचिका लगाई। इसमें ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) से कराने की मांग की गई।
2020 : ज्ञानवापी की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने ASI के सर्वे का विरोध किया। 2020 में ही रस्तोगी ने लोअर कोर्ट में याचिका लगाते हुए मामले की सुनवाई फिर से शुरू करने की मांग की।
2021:5 अगस्त को कुछ महिलाओं ने वाराणसी की स्‍थानीय अदालत में याचिका लगाई थी। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर समेत कई विग्रहों में पूजा करने की अनुमति देने और सर्वे कराने की मांग की थी। इसी याचिका पर कोर्ट ने यहां सर्वे करने की अनुमति दी थी। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद के तहखाने में शिवलिंग मौजूद है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था।
2022 : अप्रैल, 2022 में कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया और इसी आधार पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण किया गया।

ये है हिंदू पक्ष का तर्क-
– 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। कहा जाता है कि औरंगजेब ने जब काशी का मंदिर तुड़वाया तो उसी के ढांचे पर मस्जिद बनवा दी, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। यही वजह है कि इस मस्जिद का पिछला हिस्सा बिल्कुल मंदिर की तरह लगता है।
– मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम ज्ञानवापी पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
– शिवजी ने यहीं पर पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी पड़ा, जिसका मतलब होता है ज्ञान का कुआं।
– वादी पक्ष (हिंदू) के वकील विजय शंकर रस्तोगी के पास पूरे ज्ञानवापी परिसर का नक्शा मौजूद है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों तरफ देवी-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है। बीच में विश्वेश्वर मंदिर है। परिसर में ही ज्ञानकूप और नंदी विराजमान हैं।

ये है मुस्लिम पक्ष का तर्क-
-दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष भी ये बात तो स्वीकार करता है कि व्यास फैमिली की जमीन पर ही मस्जिद बनी है, लेकिन उनका कहना है कि खुद ज्ञानचंद व्यास ने ये जमीन मस्जिद को दी थी।
– रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1991 में वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर करते हुए ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति देने के साथ ही मस्जिद को ढहाने की मांग की गई थी। बाद में सुरक्षा कारणों की वजह से 1993 में माता श्रृंगार गौरी की परिक्रमा को बंद कर दिया गया था।

 

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