डॉ. पवन सक्‍सेना

नेता जी अदभुत थे, उनके अंदर एक ऊर्जा थी, जो आपको उनसे जोड़ती, अपनत्व का अहसास कराती थी।

मन बहुत भारी है। नेता जी नहीं रहे। मुलायम सिंह यादव जी। घनघोर बारिश के बीच आई यह खबर दिलों दिमाग पर बिजली गिरने जैसी है। मैने करीब तीस साल पहले मुलायम सिंह जी को पहली बार जाना। मैं नया नया पत्रकार था, अमर उजाला में। रंगरूट जैसा। राजनीति के अलावा आपसे अपने कुछ गैर राजनीतिकअनुभव आपसे साझा कर रहा हूं।
सिर पर हाथ फेरा…और अपना बना लिया
बरेली से सपा उमेश बाबू सक्सेना जी को चुनाव लड़वा रही थी। यह वह वक्त था जब डा. दिनेश जौहरी की कल्याण सिंह मंत्रीमंडल से बर्खास्तगी के बाद नए चेहरे चुनाव मैदान में थे। भाजपा से राजेश अग्रवाल जी और सपा से उमेश बाबू सक्सेना। उमेश बाबू जी जाने माने और बेहद काबिल वकील हुआ करते थे। कुछ हुआ…. और बीच चुनाव उमेश जी गायब हो गए। लापता। शोर मचा … किडनैप हो गए। गहमा गहमी, कोतुहल, शोरगुल के बीच नेता जी बरेली आये। पहले सर्किट हाउस, फिर रामपुर गार्डन में उद्यमी भाई नवीन खंडेलवाल जी के निवास पर पहुंचे, वहीं से कमल टाकीज, जहां उमेश जी रहा करते थे। एक कार के बोनट पर चढ़कर भाषण दिया। डायरी में नोट करने का जमाना था। हमने भी हिम्मत करके एक दो सवाल पूछ लिये। उन्होंने जवाब भी दिया। भारी भीड़ थी, हम और हमारे जैसे सभी साथी पसीने में भीगे हुए थे। पता नहीं क्यों… मैं अपना डायरी पेन लिए ज्यादा नजदीक पहुंच गया था, मेरे सिर पर हाथ फेरा और उनका काफिला चला गया। मैं जो यंत्रवत काम कर रहा था, कुछ सोचने को मजबूर हो गया। कुछ ही मिनटों के पहले ही संपर्क में वह किसी को भी अपना बनाना जानते थे।
स्नेहिल डांट… और फिर बात को समझाना
धीरे धीरे मेरा मीडिया का सफर चल निकला। नेता जी से कई मुलाकातें हुईं, मुख्यमंत्री, रक्षामंत्री और विपक्षी नेता के रूप में, रैलियों में, जनसभाओं में, लखनऊ में … जगह जगह। उनके व्यक्तित्व में अपनत्व का भाव अन्तर्निहित था। उल्टे पुल्टे सवाल पूछकर कभी हम या हमारे साथी उनको उलझाने फंसाने की कोशिश करते तो डांट भी देते – ऐ, तुम पढ़कर नहीं आते। वह स्नेहिल डांट होती थी। फिर सही सवाल भी बताते और अपना जवाब भी। नेता जी जैसा अब शायद कोई दूसरा नहीं होगा। उनके चाहने वाले उनको यूं ही धरतीपुत्र नहीं कहते थे। हमारे संगठन उपजा ने उनको एक बार आमंत्रित किया। आईएमए हाल में। मैं उस वक्त महामंत्री था मगर दबा छिपा सा। सामने आने, फोटो खिंचाने से कुछ डरा कुछ शर्माया सा रहना, स्वभावगत था। नेताजी ने मंच से तीन बार नाम लिया। मुझे आगे बुलाया। दैनिक जागरण के अपने कार्याकाल में भी अक्सर मेरा मिलना लगा रहा।
सांसद की सीडी और जनहित की बातें
एक सांसद जी ने मुझे एक सीडी का सेट दिया। करीब 21 -22 घंटे की काल रिकार्डिंग थी। अगर आपको याद हो यह किस्सा बहुत मशहूर हुआ था, जब अम्बानी बंधु एक थे और नए नए टेलीकाम सेक्टर में आये थे। मैं अक्सर यात्राओं में उस सीडी को सुन पाता था। उसमें मुलायम सिंह जी, अमर सिंह, अम्बानी बंधु, कई ब्यूरोक्रेट्स, आईएएस दीपक सिंघल जी और कई लोगों की बातचीत शामिल थी। आप यकीन करिए पूरे 22 घंटे की रिकार्डिंग जो टुकड़ो टुकड़ों में कई महीनों की बातचीत होगी, नेता जी की कोई भी बात, कोई भी शब्द, कोई भी निर्देश ऐसा नहीं था जिसमें आमजनता के हित की सोच ना हो, हालांकि अन्य लोग जो बातें कर रहे थे, उसमें ऐसा नहीं था।
पेड़ के नीचे की वो तस्वीर
मैने एक बार उनके पुराने साथियों पर स्टोरी की थी। लंबे समय सपा के जिलाध्यक्ष व राज्यसभा के सांसद रहे भाई श्री वीरपाल सिंह यादव जी ने मुझे एक तस्वीर दिखाई। जो शायद सन 85 के आसपास की थी, एक गांव के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर चढ़े नेता जी का भाषण चल रहा है, और सामने कुछ ही गिने चुने लोग बैठे हैं। वह बाकई धऱतीपुत्र थे, उन्होंने अपनी जमीन खुद तैयार की थी। उनको लोगों की पहचान थी। सैकड़ों लोगों को उन्होंने अपने बलबूते सांसद विधायक बना दिया। आमजनता के हितों को लेकर वह हमेशा सोचते थे।
दीदी वाला किस्सा … और मेरी तारीफ
नेता जी अदभुत थे, उनके अंदर एक ऊर्जा थी, जो आपको उनसे जोड़ती, अपनत्व का अहसास कराती थी। एक शिक्षिका दीदी अक्सर मेरे घर आती थीं, उनका कोई वेतनमान से जुड़ा काम था। मेरे लिए हिसाब किताब के उन क्लिष्ट भाषा में लिखे जीओ को समझना मुश्किल था। मैने कुछ अफसरों से भी कहा पर उनकी मदद नहीं हो सकी। वह प्रतिदिन फालोअप करतीं। थककर मैने उनको सलाह दी कि आप मुख्यमंत्री जी के पास चली जाओ। मेरा नाम बता देना। यह दूसरी वाली लाइन मैने हल्के से बोली थी, शायद मैं खुद ही कांफिडेंट नहीं था, ऐसी सलाह देने के लिए। दीदी भी धुन की पक्की। ट्रेन पकड़ी, लखनऊ पहुंच गईं, सीधे सीएम आवास। बारिश हो रही थी, भीड़ भी कम थी। नेता जी मिल गए। बताया हमें बरेली से पवन सक्सेना जी ने भेजा है, जो पत्रकार हैं। नेता जी ने उनको बैठाया, चाय पिलाई, काम भी किया और उनसे हमारी तारीफ भी की। लौटकर उन्होंने एक मिठाई के डब्बे के साथ पूरा किस्सा बताया। मैं आश्चर्यचकित था।

राजनीतिक गुणा गणित के भी उनसे जुड़े और कई किस्से भी मेरी स्मृतियों में हैं, पर आज उन पर बात करने का वक्त नहीं है। आज मैं नेता जी के उस स्वरूप को याद करना चाहता हूं, जो एक स्नेहिल अभिभावक जैसा था, हमेशा रहेगा। ईश्वर उनको अपने श्रीचरणों में स्थान दें, श्री अखिलेश यादव जी व पूरे परिवार व देश दुनिया के उनके लाखों समाजवादी समर्थकों को यह अपार दुख सहने की क्षमता प्रदान करें। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

-लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार, राजनीतिज्ञ, उद्यमी और उपजा बरेली के अध्‍यक्ष हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here