कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से अशोक गहलोत पीछे हटे तो दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा का नाम उभरा, लेकिन एक ही रात में पूरी पटकथा ही बदल गई। शुक्रवार को नामांकन के अंतिम दिन दिग्गी राजा ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया और उनके स्थान पर यकायक चेहरा उभर आया- मल्लिकार्जुन खड़गे का। उन्होंने शुक्रवार को पर्चा दाखिल कर दिया, लेकिन एपिसोड कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए जिस तरह से दिन-ब-दिन नए-नए घटनाक्रम सामने आते जा रहे हैं, अब लगने लगा है कि पर्दे के पीछे से एक पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी है और इसे लिखा गया है- 10 जनपथ से।
शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामांकन कराने का अंतिम दिन था। शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ही झारखंड से पार्टी के नेता केएन त्रिपाठी ने भी नामांकन कराया। तीनों नामांकन पर चुनाव अथॉरिटी के चेयरमैन मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में इनमें से कोई भी पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार नहीं है और ये तीनों प्रत्याशी अपने विवेक पर चुनाव लड़ रहे हैं। मिस्त्री का कहना है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पूरी प्रक्रिया में तटस्थ रहेंगी और अगर कोई दावा करता है कि उसके पास उनका (सोनिया) समर्थन है तो यह गलत है।
मिस्त्री भले ही ऐसा कह रहे हैं, लेकिन जिस तरह से गुरुवार तक चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करने वाले दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार सुबह अध्यक्ष की कुर्सी के लिए दावेदारी से हाथ खींच लिए और उनके स्थान पर अचानक प्रकट होकर मल्लिकार्जुन खड़गे ने नामांकन करा दिया, उससे साफ हो गया है कि चुनाव के लिए पहले आगे आना और बाद में हट जाना, उनकी अपनी मर्जी नहीं हो सकती। अगर ऐसा नहीं होता तो दिग्गी राजा गुरुवार को नामांकन पत्र ही नहीं लेते।
छुपा नहीं है कि कांग्रेस में कोई भी बिना 10 जनपथ की मर्जी के नामांकन करा ही नहीं सकता। गौर करें, शशि थरूर ने भी अपनी मर्जी से नामांकन नहीं कराया है। चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा लेकर कुछ दिन पहले उनको भी सोनिया गांधी के दरबार में जाना पड़ा और वहां से हरी झंडी मिलने के बाद ही उन्होंने ऐलान किया कि वह चुनावच लड़ेंगे। असल में, उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि चुनाव लड़ने का हक सबको है।
चौंकाने वाली बात यह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम तो शुरू में कहीं भी नहीं था। जाहिर है कि उनको अचानक आगे किया गया है और यह रणनीति उसी पटकथा का हिस्सा है, जो 10 जनपथ से लिखी गई है। मनमोहन सिंह के दोनों प्रधानमंत्री कार्यकाल में मंत्री रहे खड़गे गांधी परिवार के खास और वफादार हैं। ऐसा भी प्रतीत होता है कि खड़गे को लाना पहले से ही तय हो। वजह यह कि गांधी परिवार अपने किसी वफादार को ही अध्यक्ष बनाना चाहेंगा। वैसे, खड़गे को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस दलित चेहरे को पार्टी की अगुवाई का संदेश भी अगले लोकसभा चुनाव में देना चाहेगी। मालुम हो कि खड़गे वही नेता हैं, जिनको सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी और इसके लिए खड़गे शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं से मिले भी थे।
बहरहाल, अब तक बनी तस्वीर तो यही कह रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष के लिए मुख्य मुकाबला अब मल्लिकार्जुन खड़गे ओर शशि थरूर के बीच हो सकता है। हालांकि इसे एपिसोड कांग्रेस अध्यक्ष की पटकथा का हिस्सा माना जा सकता है, इसी तस्वीर नाम वापसी वाले दिन भी उभर सकती है। किसी एक के मैदान में रहने पर वही निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो जाएगा या पटकथा में कुछ और बाकी है।