दिल्ली।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सहयोगी इलॉन मस्क के नेतृत्व वाले डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DoGE) ने भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए दी जाने वाली ₹182 करोड़ की फंडिंग को रद्द कर दिया है। यह फंडिंग एक वैश्विक चुनाव सुधार कार्यक्रम का हिस्सा थी, जिसमें भारत को ₹182 करोड़ मिल रहे थे। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच हॉल ही में द्विपक्षीय संबंधों को लेकर एक मजबूत चर्चा हुई थी। लेकिन इस फंडिंग कटौती पर कोई चर्चा या आधिकारिक बयान तब जारी नहीं किया गया था। ऐसे में बीजेपी पार्टी के नेताओं की तरफ से ये आरोप और कयास लगाए जा रहे कि इस सबके पीछे कांग्रेस पार्टी या अमेरिकी व्यापारी जॉर्ज सोरस का हाथ है। उन्होनें आरोप लगाया और कहां की जॉर्ज सोरस भारत की चुनावी और आंतरिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे है। क्योंकि ये आंख में धूल झोंकने जैसी कहावत वाली बात सी हो गई। जहां दोनों देशों के बीच 2030 तक व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया हो। योजनाओं के माध्यमों से दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों में और प्रगाढ़ता बढ़ाने की बात हुई हो तो ऐसे में यह प्रश्नचिन्ह उठाना स्वाभाविक सा।
“बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इस फैसले पर सवाल उठाया और आरोप लगाते हुए कहा कि-एक बार फिर, यह जॉर्ज सोरोस हैं, जो कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के जाने-माने सहयोगी हैं, जिनकी छाया हमारी चुनावी प्रक्रिया पर मंडरा रही है।
2012 में एस.वाई. के नेतृत्व में. क़ुरैशी के नेतृत्व में, चुनाव आयोग ने द इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए – जो जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा एक संगठन है, जो मुख्य रूप से यूएसएआईडी द्वारा वित्त पोषित है। विडंबना यह है कि जो लोग भारत के चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की पारदर्शी और समावेशी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं – यह हमारे लोकतंत्र में पहली बार है, जहां पहले प्रधान मंत्री अकेले निर्णय लेते थे – उन्हें भारत के पूरे चुनाव आयोग को विदेशी ऑपरेटरों को सौंपने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी।यह स्पष्ट होता जा रहा है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने व्यवस्थित रूप से देश के हितों के विरोधी ताकतों को भारत के संस्थानों में घुसपैठ करने में सक्षम बनाया – जो हर अवसर पर भारत को कमजोर करना चाहते हैं।
हालांकि मास्क ने इस कदम को अमेरिकी सरकार के खर्चों में कटौती के तहत लिया गया बताया है और कहा है कि अमेरिकी करदाताओं के पैसों से अब इन कार्यक्रमों पर खर्च नहीं किया जाएगा । इसके साथ ही, DoGE ने बांग्लादेश, नेपाल, मोजाम्बिक, और अन्य देशों के लिए भी कई प्रकार की विदेशी सहायता को बंद कर दिया है, जिनमें राजनीति, स्वास्थ्य और शिक्षा सुधार शामिल हैं।
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