पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म: कब, क्यों और कैसे?

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पंडित डॉ. ज्ञानेद्र शर्मा

भारतीय शास्त्रों में मान्यता एवं उल्लेख है कि हमारे पितृ अश्विन मास की कृष्णपक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिन तक पृथ्वी पर आते हैं और बाद में पितृपक्ष समाप्ति पर पितृलोक में लौट जाते हैं। इस समय पितृ अपने परिजनों के साथ ही प्रवास करते हैं। पितृ पक्ष में सभी हिन्दू परिवारों को विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस पक्ष में ब्राह्मण, जामाता (दमाद), भांजा, भांजी, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। भोजन कराते समय दोनो हाथों का इस्तेमाल करना चाहिए, अन्यथा एक हाथ का भोजन राक्षसों को चला जाता है। अपने द्वार पर आने वाले किसी जंतु जानवरों को मार कर त्रिस्कृत न करें। भोजन का एक हिस्सा गाय, कुत्ता, कौआ, बिल्ली, को देना चाहिए। सांय को घर के द्वार पर एक दीपक अवश्य जलाना चाहिए।

आज के भौतिक वादी युग में सामान्यता अपने स्वर्गवासी आत्मजनों की मृत्यु दिन विस्मृति में चला जाता है। उनके लिए पितृपक्ष की कुछ तारीखें निर्धारित हैं, जिनके अनुसार पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं।

अश्विन कृष्ण प्रतिपदा: स्वर्गीय नाना, नानी का श्राद्ध इस दिन किया जाना चाहिए।

पंचमी: अविवाहित पितरों का श्राद्ध इस दिन करें।

नवमी: सौभाग्य स्त्री, मामा का श्राद्ध इस दिवस पर अवश्य करें। इस दिवस को “मातृ नवमी” भी कहा जाता है।

एकादशी एवं द्वादशी: परिवार के स्वर्गीय सदस्य जिन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया हो, उनका श्राद्ध करें।

त्रयोदशी: बच्चों का श्राद्ध, जोकि असमय मृत्यु हो गई गई, उनका श्राद्ध इस दिवस पर श्रद्धा पूर्वक किया जाना चाहिए।

सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या: यदि उपरोक्त तिथियों में किसी सदस्य जिसका मृत्यु के उपरान्त अंतिम संस्कार न हो पाया हो, उन सभी आत्मीय पितृ जनों का श्राद्ध करना चाहिए।

श्राद्ध प्रक्रिया के समय की विशेष सावधानियां:

  •  सफेद या पीले वस्त्र धारण करें।
  •  श्राद्ध कर्ता का मुख पूर्ण करते समय दक्षिण दिशा को होना चाहिए।
  •  श्राद्ध हमेशा दोपहर को ही करें।
  •  श्राद्ध प्रक्रिया में भोजन दान करते समय तुलसी पत्र का अवश्य प्रयोग करें।
  •  श्राद्ध दिवस पर ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  •  इस दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से स्वयं एवं परिवार को दूर रखें।
  •  श्राद्ध में पितरों को भोजन सामग्री मिट्टी के वर्तन, केले के पत्ते या लकड़ी के बने वर्तन का प्रयोग करें।

हिन्दू वायुपुराण के अनुसार श्राद्ध करने को स्वयं के वर्तमान जीवन को सुधारने एवं सुखी एवं संवृद्धि के लिए अवश्य बताया है। श्राद्ध करने से आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी परिवार में शांति का आगमन होता है।

मुनि पराशर, ज्योतिषाचार्य के कथन के अनुसार श्राद्ध करने से कुण्डली में राहू, केतु की स्थिति अच्छी होती है। यदि शनि, कुण्डली में है, उसको दूर करने का उपाय श्राद्ध कर्म भी है।

विशेष: यदि स्वयं श्राद्ध कर रहे हों, तो ब्रह्माजी द्वारा रचित मंत्र का तीन बार पाठ श्राद्ध कार्य में अवश्य करें।

हिंदुत्व को मानने, सनातन का आदर करना चाहते हैं, तो श्राद्ध आवश्यक है।

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