सीपीएन-माओवादी सेंटर के दिग्गज नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। प्रचंड पहले दो बार 2008-2009 और 2016-17 में भी नेपाल के प्रधानमंत्री रहे हैं।
सरकार बनाने के लिए प्रचंड की चीन समर्थन वाली छवि रखने वाले पूर्व नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सीपीआई-यूएमएल का भी समर्थन मिला है।
गौरतलब है कि 275 सीटों वाली नेपाली संसद में केपी शर्मा ओली की पार्टी को 78 सीटें मिलीं, जो प्रचंड की पार्टी को मिली 32 सीटों के करीब ढाई गुना है, इसीलिए सरकार बनाने लिए उनमें हुए समझौते के तहत पुष्प कमल दहल प्रचंड वर्ष 2025 तक ही नेपाल के प्रधानमंत्री रह पाएंगे, उसके बाद उन्हें ओली को प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन करना होगा।
बता दें कि नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने रविवार शाम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया। संसद के 265 सांसदों में से प्रचंड ने 170 सदस्यों के समर्थन का दावा किया है।
संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार, राष्ट्रपति भंडारी ने प्रचंड को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया है। प्रचंड नेपाली कांग्रेस के मौजूदा प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का स्थान लेंगे। उन्होंने इससे पहले उन्होंने नई सरकार का नेतृत्व करने का दावा पेश किया।
सात राजनीतिक दलों- उनके अपने सीपीएन-माओवादी सेंटर, सीपीएन-यूएमएल, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जनमत पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी – और तीन निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से, प्रचंड रविवार शाम राष्ट्रपति कार्यालय पहुंचे और एक पत्र पेश किया जिसमें दावा किया गया कि उन्हें संसद के अधिकांश सदस्यों से समर्थन प्राप्त है।
क्या होगा प्रचंड का भारत के प्रति रुख
केपी शर्मा ओली के शासन में नेपाल ने भारत के साथ सीमा विवाद छेड़ दिया था। चीन की मेहरबानी बनी रहे, इसलिए ही ओली सरकार ने भारतीय क्षेत्रों कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के नक्शे में शामिल कर लिया था और नए नक्शे को नेपाली संसद की भी मुहर लगवा ली थी। ऐसे में, भारत के लिए इन तीनों क्षेत्रों को लेकर नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड सरकार के रुख का बहुत महत्व होगा।
बता दें कि प्रचंड कथित सीमा विवाद पर कह चुके हैं कि इसे भारत-नेपाल के बीच कूटनीतिक और राजनीतिक बातचीत से ही सुलझाया जा सकता है। करीब छह माह पहले भारत में दिल्ली दौरे पर आए प्रचंड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की थी। विदेश मंत्री जयशंकर के साथ बैठक में प्रचंड ने कहा था कि वर्ष1950 की संधि, सीमा विवाद और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समूह (ईपीजी) की समस्या का समाधान कूटनीतिक माध्यम से ही हो सकता है। माना यही गया था कि प्रचंड का यह दौरा मूलतः भारत-नेपाल के रिश्तों में मिठास लाने का ही प्रयास था। नेपाल के संसदीय चुनाव के प्रचार अभियान में भी प्रचंड ने भारत के साथ कथित सीमा विवाद को लेकर काफी साकारात्मक रुख दिखाया था। उन्होंने नवंबर में उत्तराखंड से सटे नेपाल के धारचूला में कहा कि केवल नेपाल का नक्शा बदलने मात्र से हमें यह आधार नहीं मिल जाता है कि हम अपनी खोई हुई जमीन को भारत से फिर से हासिल कर लेंगे। प्रचंड ने कहा था कि कथित नेपाली जमीन को हासिल करने के लिए भारत के साथ राजनयिक प्रयास करने होंगे।
मोदी ने प्रचंड को दी बधाई, दोस्ती मजबूत करने की उम्मीद जताई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को नेपाल के भावी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल, जिन्हें प्रचंड के नाम से जाना जाता है, को बधाई दी।
मोदी ने ट्वीट किया कि ‘नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित होने पर पुष्प कमल दहल को हार्दिक बधाई। भारत और नेपाल के बीच अद्वितीय संबंध गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव पर आधारित हैं। मैं इस दोस्ती को और मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं।’