मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव दिवंगत सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की विरासत तो बचा ही लेतीं, लेकिन अगर प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव साथ न आते तो उनकी जीत की रिकॉर्ड मतों से न हो पाती। ऐसे में, जब सत्ताधारी भाजपा के मुकाबले सपा के अच्छे दिन नहीं चल रहे, डिंपल की रिकॉर्ड जीत उसके लिए सूबे में एक उत्साहजनक माहौल देगी। वह भी ऐसे वक्त, जब निकाय चुनाव होने हैं और यह धारणा रहती ही है कि निकायों पर सत्ताधारी पार्टी का ही कब्जा आम तौर पर होता है।
एक मायने में मैनपुरी की जीत सपा के लिए चाचा-भतीजे की जोड़ी का कमाल जैसी है। विधानसभा चुनाव में शिवपाल पूरे मन से सपा के साथ नहीं थे। वह हाशिए पर थे और बीच-बीच में उभरती उनकी नाराजगी सपा के परंपरागत यादव मतदाताओं के चाचा-भतीजे के बीच बंटने की संभावनाएं भी दिखने लगी थीं। खास तौर पर मैनपुरी औरा इटावा जैसे सपा के गढ़ों में शिवपाल का प्रभाव भी सजातीय मतदाताओं पर कम नहीं है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद बने शून्य में वह स्वाभाविक तौर पर यादव मतदाताओं के लिए अपने गढ़ में एक विकल्प के रूप में नजर आ सकते थे, अगर अखिलेश यादव उनको मनाकर साथ न लाते। शायद, अखिलेश भांप चुके थे कि अगर नाराज चाचा को साथ न लाया गया तो वह सजातीय मतदाताओं में नेताजी का विकल्प हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में सपा को भारी नुकसान होगा और इसका लाभ विपक्षी भाजपा उठा सकती है। नतीजतन, उन्होंने चाचा को साथ लाना ही मुनासिब समझा।
यह पहलू भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि भले ही सपा भाजपा का मुख्य विपक्षी दल है लेकिन सपा में अंदरखाने सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा था। विधानसभा चुनाव में पूरी जोर-आजमाइश से मुस्लिम मतदाताओं का भारी समर्थन लाकर भी अखिलेश यादव भाजपा की सरकार बनने से रोक न सके। उनकी समझ में आ गया था कि अकेले भाजपा से नहीं लड़ा जा सकता। ऊपर से शिवपाल की नाराजगी, अगर उनके कदम भाजपा की ओर कर देती तो पार्टी का रहा-सहा किला भी प्रभावित होने का डर बना हुआ था। नेताजी मुलायम सिंह यादव के जाने के बाद तो इसकी संभावना और बन जातीं।
शिवपाल की नाराजगी अगर दूर नहीं होती तो उसका लाभ भाजपा के प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को न मिलता, यह इसलिए संभव नहीं था, क्योंकि वह राजनीति शिष्य शिवपाल के ही हैं और चुनाव प्रचार के दौरान इन्होंने इस बात को जनसभाओं में भी बोला। यह भी संभव था कि नाराजगी का लाभ उठाकर शिवपाल को भाजपा अपने पाले में ले लेती और तब डिंपल की जीत आसान नहीं रह जाती।
यह जीत नेताजी के आशीर्वाद और आदर्श की है। pic.twitter.com/vr3acWeTv7
— Shivpal Singh Yadav (@shivpalsinghyad) December 8, 2022