हैदराबाद। इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन का दावा है कि भारतीय फार्मा उद्योग साल 2030 तक 130 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। बता दें कि भारतीय फार्मा उद्योग वर्तमान में 49 अरब (बिलियन) डॉलर का है और यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। ऐसे में आईपीए के दावे के मुताबिक, अगले आठ साल में फार्मा उद्योग में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी होगी। आईपीए की मानें तो भारत दुनिया के 200 से अधिक देशों को दवाओं की आपूर्ति करता है।
प्रौद्योगिकी और फार्मा-मशीनरी क्षेत्र पर आयोजित तीन दिवसीय व्यापार शो में आईपीए महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि भारत के दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के साथ, यह भारतीय उद्योग के लिए दुनिया में बदलाव लाने का समय है। भारतीय फार्मा उद्योग में बहुत संभावनाएं दिख रही हैं। उन्होंने नवाचार, आत्म-निर्भरता, निर्यात बाजार में विविधता लाने और भारतीय उद्योग के लिए भविष्य के लिए क्षमता निर्माण पर जोर दिया।
व्यापार शो में इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विरांची शाह ने भी सुदर्शन जैन की बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जब भारत अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तो वर्ष 2047 में भारतीय फार्मा 500 अरब डॉलर का उद्योग बन जाएगा। पीएलआई 1.0 और 2.0 इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। डॉ. शाह ने कहा कि भारत अगले 25 वर्षों में नंबर एक बनने की आकांक्षा रखता है। पीएलआई और क्लस्टर निर्माण से भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी।
डॉ. शाह ने कहा कि आईडीएमए पीएलआई 2.0 पर भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। आयातित दवाओं और उपकरणों का बड़ा हिस्सा स्थानीय रूप से निर्मित किया जाएगा, आयात पर निर्भरता कम होगी और भारत को स्वास्थ्य सुरक्षा मिलेगी। भारत जेनेरिक मैन्युफैक्च रिंग दिग्गज से वैल्यू एडिशन की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि नवाचार, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता भारत को इस ओर ले जाएगी।
फार्मेक्ससिल के महानिदेशक रवि उदय भास्कर ने कहा कि भारतीय फार्मा और इससे संबंधित उद्योगों का भविष्य उज्जवल है, लेकिन चुनौतियां भी हैं। कोई भी निर्यात दूसरे देशों की आयात नीतियों पर निर्भर करेगा। विशेष रूप से विनियमों के संदर्भ में उद्योग को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। अलग-अलग देशों के अलग-अलग नियम हैं। विकास के लिए उद्योग-नियामक की समझ महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ जैसे सामान्य नियामक मानकों पर विश्व स्तर पर काम करने की जरूरत है, ताकि यह फार्मा उद्योग के लिए मददगार हो।